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Thursday, May 6, 2010

मनमोहन देसाई: करिश्माई निर्देशक





कल देर रात 'अमर अकबर एंथोनी" देखी। पहले भी कई बार देखी थी और यकीन मानिये हर बार देखने में उतना ही मजा आता है जितना कि पहली बार देखने वाले को आया था। मनमोहन देसाई वाकई करिश्माई दिग्दर्शक थे। हिंदी चित्रपट में तो वे ही मसाला फिल्मों का जनक हैं। उनकी फिल्में होती ही ऐसी थीं। दिमाग पर तो जोर डालना ही नहीं पड़ता था।
मनमोहन देसाई ने यूं तो अपने शुरूआती दिनों में 'छलिया", 'ब्लफ मास्टर", 'बदतमीज", 'सच्चा-झूठा", 'रोटी", और 'रामपुर का लक्ष्मण" जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। लेकिन सत्तर के दशक में अमर अकबर एंथोनी, मर्द, धरमवीर, सुहाग जैसी फिल्मों ने उन्हें खास पहचान दी। सभी फिल्में जबरदस्त हिट हुईं। जैसा मैंने पहले कहा कि मनमोहन देसाईजी की फिल्म देखते समय दिमाग पर जोर नहीं डालना पड़ता। अब अमर अकबर एंथोनी के उस सीन को याद किजीए जहां, 'शबाना आजमी (शुरू में बदमाशों के गैंग से ताल्लुक रखती हैं।) लिफ्ट मांगती हैं। आदमी को यदि राइट साइड जाना है तो वह राइट में खड़े होकर लिफ्ट मांगेगा और अगर लेफ्ट जाना है तो लेफ्ट साइड खड़े होकर लिफ्ट मांगेगा। लेकिन यहां सिचुएशन एकदम उलट है। शबाना को जब राइटवाले लिफ्ट नहीं देते तो वह उसी साइड खड़े होकर लेफ्ट जाने का इशारा करती है।" छोटे से सीन में मनमोहनजी ने शबाना का पूरा चरित्र परदे पर उतार दिया। दर्शक समझ जाता है कि इसे लिफ्ट से मतलब नहीं है। यह तो रुपये ऐंठने की तरकीब मात्र है। इसी फिल्म के क्लाइमेक्स में अमर (विनोद खन्नाा,) अकबर (ऋषि कपूर) और एंथोनी (अमिताभ बच्चन) भेस बदलकर गुंडों के अड्डे पहुंचकर गाना गाते हैं और कई बार अपना परिचय अमर अकबर एंथोनी के रूप में देते हैं। लेकिन गुंडों को समझ नहीं आता है, ये कौन हैं? यही नहीं इसी फिल्म में पेड़ की डाली मां (निरूपमा राय) के सिर पर गिरती है तो उसे दिखाई देना बंद हो जाता है, और फिर शिरडी वाले साईं बाबा वाली कव्वाली में साईं बाबा की मूर्ति से निकली दिव्य ज्योति से उनकी आंखों की रोश्ानी वापस भी आ जाती है। है ना कमाल के मनमोहन जी। अब बताइए ऐसी फिल्म देखने में मजा तो आएगा ही।
जरा मर्द फिल्म को याद करें। जब दारा सिंह अपने नवजात (बड़े होकर अमिताभ बच्चन) के सीने पर चाकू से मर्द लिख देते हैं और वह नवजात हंसता रहता है। यही मर्द बड़ा होकर अपने हाथों से रस्सी के सहारे विमान को भी रोक लेता है। मर्द फिल्म में ही मां को शेर बचाकर ले जाता है और जब मां उसे नमस्कार करती तो शेर भी 'हाथ जोड़ लेता है। उस समय परदे पर इस सीन को देखकर कितनी सीटियां बजती होंगी इसका अंदाजा लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं है। धरमवीर में खिड़की से फेंके गए बच्चे को बाज अपनी चोंच में 'कैच" कर लेता है और उसे सुरक्षित उसके पिता के पास पहुंचा देता है।
मनमोहनजी ने अपने पूरे करियर में करीब 20 फिल्मों का निर्देशन किया जिनमें से तकरीबन 13 फिल्में हिट रहीं। क्या बात आज है ऐसा कोई निर्देशक। मनमोहन देसाई ने राज कपूर, श्ाम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन, विनोद खन्नाा, ऋषि कपूर, राजेश खन्नाा, रणधीर कपूर, धर्मेंद्र, जितेंद्र जैसे सितारों के साथ काम किया। आज के बहुत से निर्देशक मनमोहन देसाई के सिनेमा के कायल है और उनकी फिल्मों में यह बात दिखाई भी देती है। डेविड धवन की फिल्में भी ऐसी ही होती हैं। मनमोहन देसाई ने ऐसे समय 'मसाला फिल्मों" को पेश किया जब भारतीय सिनेमा आर्ट फिल्मों की झुक रहा था और वह अंतरराष्ट्रीय फिल्म उत्सवों में हिस्सा लेकर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था। लेकिन मनमोहन देसाई ने हमेशा अपने मन की सुनी और दर्शकों को स्वस्थ मनोरंजन दिया।
एक नजर देसाईजी की फिल्मों पर
छलिया (1960)
बल्फ मास्टर (1963)
बदतमीज (1966)
सच्चा झूठा (1970)
रामपुर का लक्ष्मण (1972)
आ गले लग जा (1973)
भाई हो तो ऐसा (1973)
रोटी (1974)
परवरिश (1977)
धरमवीर (1977)
अमर अकबर एंथोनी (1977)
सुहाग (1979)

नसीब (1981)


देश प्रेमी (1983)

कुली (1983)
मर्द (1985)
गंगा जमुना सरस्वती (1988)
तूफान (1989) (निर्माता थे।)
photo courtesy: memsaabstory.wordpress.com/.../ and satyamshot.wordpress.com
p-pcc.blogspot.com/2008/06/mard-1985.html