फिल्म का मूल प्लॉट रामायण से प्रेरित है। अब रामायण की कहानी बताने की जरुरत तो नहीं है। सीता हरण से लंका विजय तक की कहानी है फिल्म 'रावण"। फर्क इतना है कि बीरा (अभिषेक) के चंगुल में फंसी रागिनी (ऐश्वर्या) के मरने की तारीख अपहरण के 14 दिन बाद मुकर्रर करता है। इन्हीं 14 दिनों की कहानी है यह फिल्म। इसलिए स्टोरी पर चर्चा नहीं ही करनी चाहिए।

कोई माने या ना माने फिल्म देखते रामायण के सारे पात्र याद आ जाते है।
विक्रम (पुलिस अफसर) राम
ऐश्वर्या राय (पुलिस अफसर की पत्नी) सीता
गोविंदा (फारेस्ट ऑफिसर) हनुमान जैसा...
अभिषेक बच्चन (बीरा) रावण
प्रियामणि (बीरा की बहन) सुरपनखा
लीक से हटकर कहानी, हैरतअंगेज कर देने वाले स्टंट, खूबसूरत लोकेशंस रावण को आम बालीवुड फिल्मों से अलग बनाती है। हालांकि यह मणिरत्नम की अन्य फिल्मों रोजा, बॉम्बे, युवा और गुरु के टक्कर की नहीं है। फिल्म का पहला भाग बोझिल है। बहुत सा समय पात्रों का समय देने में निकल जाता है। कहानी जब फ्लैश बैक में जाती तो थोड़े समय के लिए दिमाग घूम जाता है। 'युवा" जिन्होंने देखी होगी वे इसके शुरू के 20-25 मिनट में ही पूरी फिल्म की थीम समझ जाते हैं। लेकिन रावण इंटरवल तक समझ नहीं आती है जबकि आपको यह पता है कि फिल्म का प्लाट रामायण से लिया गया है। आप यही सोचते रहेंगे फिल्म नक्सलवाद पर आधारित होगी। दूसरे हाफ में फिल्म अपने ट्रैक पर वापस आ जाती है।
फिल्म के पात्र भी अजीब से है। जैसे बीरा का चरित्र तुनकमिजाज साइको व्यक्ति जैसा है। रागिनी बीरा से सहानुभूति रखती है। यह भी हजम नहीं होता। रागिनी के पति देव प्रताप सिंह शुरू से खलनायक लगते है। शादी में फायरिंग और तमाम चीजें गले से नहीं उतरती।
अब बात अदाकारी की तो...यह ऐश्वर्या की अदाकारी के लिए याद रखी जाएगी। शायद जोधा के रोल के बाद इसी फिल्म उन्होंने खूब मेहनत की है। अभिषेक साधारण रहे हैं गुरु वाली बात भी नहीं। गोविंदा ने इतना छोटा रोल क्यों स्वीकारा समझ नहीं है। ब्रिकम का अभिनय भी शानदार है। रवि किशन ने अपने चरित्र से पूरा इंसाफ किया है।
'रावण" की लोकेशन, सिनेमैटोग्रॉफी और स्टंट सीन कमाल के हैं। घने जंगल, ऊंचे-ऊंचे पहाड़, झरने नदिया, बोट्स ये सब परदे पर रोमांच पैदा करने के लिए काफी हैं। ऊपर से संतोष सिवान के शॉट्स जिसमें डेफ्थ ऑफ फील्ड की कलाकारी की बात ही निराली है।