Ek Nazar

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Saturday, August 29, 2009

300 करोड़ का दांव


दीवाली और क्रिसमस के बीच बॉलीवुड के तीन सबसे बड़ी फिल्में रिलीज होंगी। तीनों ही सितारा फिल्में हैं और इनका निर्देशन भी नामचीन निर्देशकों ने ही किया है। इस दो माह के अंतराल में बॉलीवुड के करीब 300 करोड़ दांव पर लगे हैं। दिक्कत की बात यह है कि तीनों ही फिल्मों की रिलीज तारीख आसपास ही है।

थ्री इडीयट्स

आमीर खान का यह चित्रपट 25 दिसंबर को रिलीज होगा। यह चेतन भगत के नॉवेल `5 प्वाइंट्स समवन´ पर आधारित है। मुन्नाभाई सीरीज की दो फिल्में बना चुके राजकुमार हिरानी इस फिल्म को निर्देशित कर रहे हैं और बैनर है विधूविनोद चोपड़ा का। आमिर खान के अलावा आर. माधवन, सरमन जोशी, बोमन ईरानी, मोना सिंह भी फिल्म में नजर आएंगे। फिल्म का संगीत टी-सीरीज कंपनी ने करीब 12 करोड़ रुपये में खरीदा है।

माइ नेम इज खान

धरमा प्रोडक्शन के बैनर तले बन रही इस फिल्म का लोगों को बेसबरी से इंतजार है। लंबे समय बाद काजोल और शाहरुख की जोड़ी फिर परदे पर नजर आएगी। कुछ-कुछ होता है, कभी खुशी कभी गम और कभी अलविदा ना कहना, जैसी हिट फिल्में बना चुके करण जौहर को इस फिल्म से काफी उम्मीदें हैं। वैसे करण हाल ही में `स्टार फॉक्स स्टुडिओ´ से करार को लेकर भी चर्चा में आए थे। फिल्म की शूटिंग के दौरान अमेरिका गए किंग खान एयरपोर्ट पर बदसलूकी का भी शिकार हुए। वैसे यह फिल्म भी अमेरिका में 9/11 को हुए आतंकी हमले के बाद अमेरिका में बसे मुसलमानों पर आधारित है। शाहरुख और काजोल के अलावा इसमें अपने समय की मशहूर अदाकारा जरीना बहाव भी दिखाई देंगी। इसके अलावा जिमी शेरगील भी अलग गेट-अप में दिखाई देंगे। फिल्म इसी साल रिलीज होगी। वैसे करण जौहर अपनी फिल्म हमेशा से दीवाली के आसपास ही रिलीज करते हैं। तो कही ना कही अन्य दो फिल्मों से इसका क्लैश हो सकता है?

काइट्स

राकेश रोशन अपनी नई फिल्म `काइट्स´ लेकर आ रहे हैं। काइट्स एक लव ट्राइंगल है और इसमें हृतिक रोशन, बारबरा मूरी (स्पेनीश अभिनेत्री) के अलावा कंगना रानाउत भी है। मर्डर फिल्म से प्रसिद्ध हुए अनुराग बसु को निर्देशन की कमान सौंपी गई है। खास बात यह भी है, कि यह हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में बन रही है। फिल्म में हृतिक और बारबरा के चुंबन दृश्य को लेकर पहले ही चर्चाएं शुरू हो गयी हैं।

तीनों की रिलीजिंग आसपास!

थ्री इडियट्स की प्रदर्शन तारीख करीब-करीब 25 दिसंबर तय हो चुकी है। लेकिन काइट्स को लेकर अभी ऊहापोह की स्थिति है। रोशन चाहते हैं कि यह फिल्म इंटरनैशनल टेंड के हिसाब से रिलीज हो। वैसे पता नहीं क्यों ऐसा कहा जा रहा है कि काइट्स की रिलीज तारीख 18 दिसंबर तय कर दी गई है। अगर वाकई में ऐसा होता है बिजनेस के हिसाब यह सही नहीं होगा। वैसे 2006 में भी आमीर खान की `फना´ और हृतिक की `क्रिश´ की रिलीज तारीख में मात्र एक माह का अंतर था।

Friday, July 31, 2009

मुझको मेरे बाद जमाना ढूंढेगा


रफी साहब को सुनों तो ऐसा लगता है कि सुनते ही जाओ। मैंने उनका सबसे पहला गाना तब सुना था जब मैं तीसरी क्लास में पढ़ता था। स्कूल में कोई कार्यक्रम था जिसके लिए `चुन-चुन करती आई चिड़िया´ (िफल्म अब दिल्ली दूर नहीं) गाने पर डांस करना था। किसी कारण से यह प्रोग्राम तो नहीं हो पाया लेकिन मुझे यह गीत बहुत पंसद आया। इसके बाद कई बार रेडियो पर यह गाना मैंने सुना। गाना पूरा होते उद्घोषक गायक का नाम मो. रफ़ी कहता था। उस वक्त मुझे मो. रफी के बारे में कुछ नहीं पता था। इसके बाद टीवी पर पहली बार कश्मीर की कली का गीत `किसी ना किसी से कहीं ना कही´ सुना। गीत शुरूआती सीन में एक ढलान पर उनकी कार लुढकने लगती है, और गीत शुरू हो जाता है। वह मेरे लिए बड़ा मजेदार था क्योंकि उन दिनों मैं साइकिल चलाना सीख रहा था और घर के पास मौजूद पुलिया पर साइकिल का लुलढ़ना और मेरा इसी गीत को गुनगुना। मेरे डैडी भी रफी साहब के गानों के दीवाने हैं। मुझे याद है बचपन में वे अक्सर टेप रिकॉर्डर पर रफी साहब के गाने सुनते और मैं भी। यह क्रम आज भी जारी है फर्क इतना है कि टेप रिकॉर्डर की जगह सीडी प्लेअर और कंप्यूटर ने ले ली।रफी साहब जैसा दूसरा कोई नहीं। अपनी रेंज, हर कलाकार पर िफट बैठने वाली भावपूर्ण खुली लोचदार आवाज, अभिनेता की शैली के अनुरूप गायकी को ढाल लेने, उसमें अभिनय को समाहित करने, सुर को बड़ी सहजता के साथ आसमान की ऊंचाई और अतल गहराई तक ले जाने और मध्यम सुर में भी उसी खूबी से गायन की क्षमता से मोहम्मद रफी ने जो मुकाम हासिल किया था, दूसरे गायक आज तक उसके आसपास भी नहीं पहुंच पाए हैं। बचपन में रफ़ी, कुंदन लाल सहगल के मुरीद थे और गाने गाया करते थे। उनके भाई हामिद मियां उनके इस फन को पहचाना और रफी एक फनकार के रूप में दुनिया के सामने आया। उन्हें पहली बार मंच पर गाने का मौका सहगल के ही कार्यक्रम में मिला। दरअसल हुआ यूं कि लाहौर में सहगल का कार्यक्रम था और इसे सुनने के लिए तेरह साल के रफी अपने भाई हामिद के साथ उस कार्यक्रम में गए थे। सहगल गाना शुरू करने वाले ही थे कि अचानक बिजली चली गई और उन्होंने गाने से मना कर दिया। ऐसी स्थिति में हामिद ने कार्यक्रम के संचालक से अनुरोध किया कि दर्शकों को शांत रखने के लिए उनके भाई को गाने का मौका दिया जाए। रफी के गाना शुरू करते ही दर्शक शांत हो गए। उसी कार्यक्रम में संगीतकार श्यामसुंदर भी मौजूद थे, जिन्होंने रफी की आवाज से प्रभावित होकर उन्हें मुम्बई (तत्कालीन बम्बई) आने का न्योता दिया। रफी ने श्याम सुंदर के संगीत निर्देशन में पहली बार 1942 में पंजाबी िफल्म `गुल बलोच´ के लिए गायिका जीनत बेगम के साथ युगल गीत `सोनिए नी हीरीए नी´ गाया। रफी की आवाज से श्याम सुंदर इतने अधिक प्रभावित थे कि उन्होंने अपनी िफल्म `बाजार´ में उनसे सात गाने गवाए। लेकिन उन्हें उतनी पहचान नहीं मिली। उनका संघर्ष जारी रहा। नौशाद के संगीत निर्देशन में एक सह-गायन के बाद उन्हें पहली बार `सुहानी रात ढल चुकी न जाने तुम आओगी´ गवाया। यह गीत इतना लोकप्रिय हुआ रफी राताें-रात स्टार बन गए। िफर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। नौशाद और गीतकार शकील बंदायूनी के साथ शुरू हुआ उनका संगीत का यह सफर काफी लंबा चला और इस तिकड़ी ने एक से बढकर एक लाजवाब गीतों के खजाने से िफल्म संगीत को समृद्ध बनाने में अमूल्य योगदान किया। बैजू बावरा रफी के कैरियर में कीर्तिस्तम्भ मानी जाएगी । इस िफल्म में नौशाद के संगीत निर्देशन में रफी की गायकी का चरमोत्कर्ष देखने को मिलता है। वास्तव में यही वह िफल्म थी जिससे रफी ने साबित किया कि वह हर तरह के गीत गाने की क्षमता रखते हैं। इस िफल्म का हर गीत अविस्मरणीय है मन तड़पत हरि दर्शन को आज, झूले में पवन के आई बहार, इंसान बनो कर लो भलाई का कोइ oकाम, तू गंगा की मौज मैं जमुना का धारा, ओ दुनिया के रखवाले सुनदर्द भरे मेरे नाले, बैजू बावरा की जबरदस्त कामयाबी के बाद रफी हर संगीतकार कीपहली पसंद बन गए। हुस्नलाल, भगतराम, रोशन, सी. रामचंद्र, ख©याम, हंसराज बहल, एन दत्ता, जयदेव, चित्रगुप्त, वसंत देसाई, हेमन्त कुमार, ओपी. नैयर, कल्याण जी आनन्द जी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, रवि, इकबाल कुरैशी, एसडी. बर्मन, आरडी. बर्मन, उषा खन्ना, संगीतकारों के लिए उन्होंने हजारों सुमधुर गीत गाए। मदन मोहन, ओपी नैयर, रवि और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल तो उनके बगैर गायन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। ओ पी नैयर ने तो यहाँ तक कह दिया था कि यदि रफी नहीं होते तो ओपी नैयर भी नहीं होता। और तो और उन्होंने किशोर कुमार के लिए भी पाश्र्व गायन किया, यानि परदे पर किशोर दा और आवाज रफी साहब की। मो. रफी निजी जिन्दगी में बेहद कम बोलने वाले, विनम्र और विवादों से दूर रहने वाले व्यक्ति थे। उनकी जिन्दगी में सिर्फ एक बार ऐसा मौका आया था जब वह विवादों में पड़ने से खुद को नहीं बचा पाए थे। गायकों को रायल्टी के मुद्दे पर उनकी लताजी के साथ तकरार हो गई थी, जिसकी वजह से दोनों के बीच लगभग चार साल तक बातचीत बंद रही। इस दौरान सुमन कल्याणपुर और रफी की जोड़ी ने इंडस्ट्री में धूम मचाई बाद में अभिनेत्री नLगस के समझाने, बुझाने से दोनों ने एक कार्यक्रम में शिरकत करते हुए ज्वेल थीफ का गाना `दिल पुकारे आ रे आरे आरे´ गीत गाकर संबंधों पर जमी बर्फ को तोड़ा था। एक बार ठोकर िफल्म के गीत `अपनी आंखों में बिठाकर कोई इकरार करूं´ गीत के लिए संगीतकार श्यामजी-घनश्याम से उन्होंने मात्र एक रुपये पारिश्रमिक लिया था क्योंकि इस संगीतकार जोड़ी ने रफी साहब से गवाने के लिए अपनी पत्नी के जेवर गिरवी रख दिए थे। रफी की कैरियर में एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें किशोर दा से कड़ी चुनौति मिली। आराधना में गाये गीतों का ऐसा तूफान आया कि रफी साहब का सितारा गिर्दश में चला गया। लेकिन उन्होंने जल्द ही हम किसी से कम नहीं िफल्म से वापसी की और क्या हुआ तेरा वादा से गाने से िफर छा गये। इस गीत के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। चार दशक से भी लंबे गायन के कैरियर में रफी के उत्कृष्ट योगदान को देखते हुए उन्हें 1965 में प«श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें गीतों के लिए छह बार सर्वश्रेष्ठ पाश्र्व गायक का िफल्म फेयर पुरस्कार भी मिला। चौदहवीं का चांद हो, तेरी प्यारी प्यारी सूरत को, चाहूंगा मैं तुझे सांझ सबेरे, बहारों फूल बरसाओ, दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर और हम किसी से कम नहीं में क्या हुआ तेरा वादा केलिए उन्हें पुरस्कार हासिल हुए। हालांकि रफी के करोड़ों प्रशंसकों को इस बात की गिला है किअपनी आवाज की जादूगरी से दुनिया का दिल जीतने वाले निLववादरूप से सर्वश्रेष्ठ इस गायक को भारत रत्न के काबिल क्यों नहीं समझा गया। गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉड्र्स में उनके नाम से 26,000 गीतों का रिकार्ड दर्ज़ था, लेकिन बाद में इसे हटा लिया गया।

मैं चलूं

रफी साहब ने आखिरी गीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए िफल्म आस-पास में गाया। गीत के बोल हैं `तू कहीं आस-पास है ऐ दोस्त´। गीत रिकॉर्ड होने के बाद रफी ने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल से कहा मैं चलूं। रफी साहब के मुंह से ऐसे बोल सुनकर दोनों चौंक गए क्योंकि रफी साहब ने पहले ऐसा कभी नहीं कहा था। और 31 जुलाई 1980 वह मनहूस दिन था जिस दिन रफी अपने चाहने वालों को छोड़कर हमेशा के लिए रुख्सत हो गये और छोड़ गए अपने पीछे वे बेशुमार नगमें जिन्हें आज हम उसी शिद्दत से सुनते हैं।
इनपुट वार्ता

Wednesday, July 22, 2009

लव आज कल-मोहब्बत जिंदा रहती है.....




आने वाली फिल्म लव आज कल


बतौर निर्माता सैफ अली खान की यह पहली फिल्म है और इम्तियाज़ अली की निर्देशक के रूप में तीसरी। लोगों को इस फिल्म का बड़ी बेसबरी से इंतजार है क्योंकि इसमें हर दिल अजीज दीपिका पादुकोण भी है और सबसे खास ऋषि कपूर और नीतू सिंह की जोड़ी इसमें लंबे अरसे बाद लोगों को दिखेगी।सैफ लंबे अरसे से निर्माता बनना चाहते थे, क्योंकि शाहरुख और आमिर के बाद वे ही खान बचे (सलमान के जिक्र का मतलब नहीं है...?) थे। सैफ को दरकार थी, एक अच्छी कहानी और उनकी तलाश पूरी की करीना ने। सैफ को इम्तियाज़ के साथ फिल्म बनाने के लिए करीना ने ही एप्रोच किया था। करीना और इम्तियाज़ जब वी मेट में साथ काम कर चुके हैं। सैफ ने जब कहानी सुनी तो वे फौरन फिल्म बनाने के लिए तैयार हो गये। इम्तियाज़ अली ने ही लव आज कल की कहानी लिखी और फिल्म को निर्देशित किया है। फिल्म की कहानी को लेकर काफी गोपनीयता बरती गयी है। वैसे फिल्म दो पिरीयडों की कहानी है। एक समय है 1965 का जिसकी पृष्ठभूमि में भारत है और दूसरा 2009 यानि आज और पृष्ठभूमि में है सेन फ्रांसिसको। और लव आजकल का मतलब है कि भले वक्त बदल जाए लेकिन मोहब्बत जिंदा रहती है, मोहब्बत मर नहीं सकती। अब ये प्रयोग लोगों को कितना पसंद आता है यह 31 जुलाई को ही पता चलेगा। जब फिल्म रिलीज होगी। वैसे इसी दिन मोहम्मद रफी साहब की पुण्यतिथी भी है और उनका प्रसिद्ध गाना है, मोहब्बत जिंदा रहती है, मोहब्बत मर नहीं सकती.....।




निर्माता- सैफ अली खान, दिनेश विजन निर्देशक- इमित्याज़ अलीकलाकार- सैफ अली खान, दीपिका पादुकोन, नीतू सिंह, ऋषि कपूर.संगीत- प्रीतमगीत इरशाद कामिल सिनेमैटोग्राफी नटराजन सुब्रमण्यम

Thursday, July 9, 2009

112 साल पहले रिलीज हुई थी पहली फिल्म







चलो सिनेमा ब्लॉग पर आपका स्वागत है। फिल्म निर्माण भारत के प्रमुख उद्योगों में से एक है। हर साल 800 से ज्यादा फिल्में बनाने वाली हमारी फिल्म इंडस्ट्री का इतिहास काफी पुराना है। चूंकि इस ब्लॉग पर यह पहली पोस्टिंग है इसलिए भारतीय फिल्म के छोटे से लेकिन हैरान कर देने वाले इतिहास से आपको रू-ब-रू कराने की कोशिश कर रहा हूं। मैंने अब तक जो पढ़ा है, सुना है और सामग्री उपलब्ध है उसी पर मेरा यह लेख आधारित है।



भारत में पहली फिल्म आज से 112 साल पहले जुलाई 1897 में बंबई (अब मुंबई) के वॉटसन होटल में रिलीज हुई थी। इसका निर्माण ल्यूमर बंधुओं ने किया था। मजे कि बात यह है कि फिल्म महज दस मिनट की थी और इसमें केवल छह दृश्य थे। ट्रेन का स्टेशन पर आने का दृश्य, समुद्र में नहाने का दृश्य, मजदूरों के मील से बाहर निकलने का दृश्य, बिçल्डंग का ढहना और महिलाओं और सैनिकों का गाड़ी पर घूमना। इन अलग-अलग दृश्यों को एक साथ जोड़कर फिल्म का निर्माण किया गया था। इस फिल्म में कोई संवाद नहीं थे।



हालांकि इससे पहले भी सन्ा् 1889 में एक भारतीय फिल्म निर्माता एचएस भाटवडेकर ने फिल्म का निर्माण किया था। फिल्म के नाम थे, दो पहलवानों की कुश्ती और बंदर को नचाता मदारी। ये फिल्में भी महज तीन मिनटों की ही थीं और इसमें केवल दो दृश्य थे।1 जनवरी 1900 को एक शॉर्ट फिल्म और रिलीज हुई। जिसे एक नृत्यांगना फातिमा और एक ब्रितानी कलाकार टिवेलो ने बनाया था। उन्होंने ब्रिटेन से कुछ पुरानी फिल्मों की रीलें लाईं और उन्हें आपस में जोड़कर एक फिल्म की शक्ल दे दी। यह फिल्म बंबई के नावेल्टी सिनेमा में रिलीज की गई थी। ये भी मूक फिल्म थी। 1889 से 1930 तक मूक फिल्मों का दौर चलता रहा। इस दौरान करीब 1200 फिल्में रिलीज हुईं। ये बेहद अफसोसजनक तथ्य है कि इनमें से कुछ के प्रिंट उपलब्ध हैं।



1913 में दूंढीराज गोविंद फाल्के (दादा साहेब फाल्के) ने राजा हरीशचंद्र फिल्म का निर्माण किया। यह भी मूक फिल्म ही थी। फिर आया वह दौर जिसने उस समय की फिल्मी दुनिया की शक्ल ही बदलकर रख दी।



बात है 1931 की जब भारत की पहली बोलती फिल्म आलमआरा रिलीज हुई। इसका निर्माण इपीरियल फिल्म कंपनी ने किया था और आलमआरा के निदेüशक थे आदेüशीर ईरानी। संगीतकार थे फिरोजशाह मिस्त्री और बी ईरानी। फिल्म में मुय भूमिकाएं निभाईं थीं, मास्टर विठ्ठल, जुबैदा, सुशीला और पृथ्वीराज कपूर ने। 124 मिनट की फिल्म में पृथ्वीराज कपूर (राज कपूर के पिता) ने खलनायक की भूमिका निभाई थी। मास्टर विठ्ठल नायक की भूमिका में थे और जुबैदा नायिका। नायिका का नाम फिल्म में आलमआरा था, जिसका मतलब होता है विश्व का सौंदर्य (शायद सबसे सुंदर )।... .....क्रमश