Ek Nazar

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Saturday, September 25, 2010

याद किया दिल ने कहां हो तुम

सोचा था हेमंत दा की पोस्टिंग कुछ अलग करुंगा। इसके लिए रॉ मटैरियल भी तगोड़ लिया था। लेकिन वक्त ने इसकी इजाजत नहीं दी। शाम तो दफ्तर आए तो एजेंसी पर मैटर रिलीज हो चुका था। हमने उठाया कांट-छांट की और वैसे ही ठेल दिया। आगे कोशिश करुंगा की अपनी योजना को मूर्त रूप दे सकूं।


हिन्दी और बंगला फिल्मों के महान पार्श्वगायक और संगीतकार हेमंत कुमार के मदहोश करने वाले गीत आज भी फिजां में गूंजते महसूस होते हैं और उनकी स्मृति में श्रोताओं के दिल से यही आवाज निकलती है 'याद किया दिल ने कहाँ हो तुम" हेमंत कुमार मुखोपाध्याय का जन्म 16 जून 1920 को बनारस में हुआ। उनके जन्म के कुछ समय के बाद उनका परिवार कोलकाता चला गया, जहाँ उन्होंने मित्रा इंस्टीटयूट से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की । इंटर की परीक्षा उतीर्ण करने के बाद हेमंत कुमार ने जादवपुर यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया लेकिन कुछ समय के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ दी क्योंकि उस समय तक उनका रूझान संगीत की ओर हो गया था और वह संगीतकार बनना चाहते थे। उन्होंने संगीत की अपनी प्रारंभिक शिक्षा एक बंगला संगीतकार शैलेश दत्त गुप्ता से ली। इसके अलावा उस्ताद फैयाज खान से उन्होंने शााीय संगीत की शिक्षा भी ली।
वर्ष 1937 में शैलेश दत्त गुप्ता के संगीत निर्देशन में एक विदेशी संगीत कंपनी कोलंबिया लेबल के लिए हेमंत कुमार ने गैर फिल्मी गीत गाए । इसके बाद उन्होंने लगभग हर वर्ष ग्रामोफोनिक कंपनी ऑफ इंडिया के लिए अपनी आवाज दी। वर्ष 1940 में ग्रामोफोनिक कंपनी के लिए ही कमल दास गुप्ता के संगीत निर्देशन में हेमंत कुमार को अपना पहला हिन्दी गाना 'कितना दुख भुलाया तुमने" गाने का मौका मिला, जो एक गैर फिल्मी गीत था।

कुछ समय के बाद वे अपने मित्र हेमेन गुप्ता के साथ मुंबई आ गए। वर्ष 1951 मंे फिल्मिस्तान के बैनर तले बनने वाली अपनी पहली हिन्दी फिल्म 'आनंद मठ" के लिए उन्होंने हेमंत कुमार से संगीत देने की पेशकश की। 'आनंदमठ" की सफलता के बाद हेमंत कुमार संगीतकार के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए। इस फिल्म में लता मंगेशकर की आवाज में गाया 'वंदे मातरम्" गीत आज भी श्रोताओं में पूरे देशप्रेम का उबालला देता है। वर्ष '1951 मंे फिल्मिस्तान की शर्त में भी हेमंत कुमार का संगीत पसंद किया गया। इस बीच एसडी.बर्मन के संगीत निर्देशन में जाल, हाउस न. 44 और सोलहवां साल जैसी फिल्मों के लिए उन्होंने जो गाने गाए, वे श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुए। वर्ष 1954 में फिल्म नागिन में अपने संगीत को मिलीसफलता के बाद हेमंत कुमार सफलता के शिखर पर जा पहुंचे। नागिन का एक गीत 'मन डोले मेरा तन डोले" आज भी श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय है । इस फिल्म के लिए हेमंत कुमार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
हेमंत कुमार के संगीत से सजी गीतों की लंबी फेहरिस्त मे कुछ है
याद किया दिल ने कहाँ हो तुम
मन डोले मेरा तन डोले
मेरा दिल ए पुकारे आजा
नैन से नैन
जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला
है अपना दिल तो आवारा
इंसाफ की डगर पर बच्चों दिखाओ चल के
न जाओं सैंया छुडा के बहिंया
बेकरार करके हमे यूं न जाइए
कहीं दीप जले कहीं दिल
जरा नजरों से कह दो जी
ना तुम हमे जानो
वो शाम कुछ अजीब थी
तुम पुकार लो तुम्हारा इंतजार है
पचास के दशक में हेमंत कुमार ने बंगला और हिन्दी फिल्मों मेंसंगीत निर्देशन के साथ साथ गाने भी गाए । वर्ष 1959 में उन्होंन ेफिल्म निर्माण के क्षेत्र मे ंभी कदम रखा और हेमंता बेला प्रोडक्शन नाम की फिल्म कंपनी की स्थापना की जिसके बैनर तले उन्होंने मृणाल सेनके निर्देशन में एक बंगला फिल्म नील आकाशेर नीचे का निर्माण किया । इस फिल्म को प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल दिया गया । इसके बाद हेमंत कुमार ने अपने बैनर तले बीस साल बाद, कोहरा, बीबी और मकान, फरार, राहगीर, और खामोशी 1969 जैसी कई हिन्दी फिल्मों का भी निर्माण किया। सत्तर के दशक मे उन्होंने हिन्दी फिल्मों के लिए काम करना कुछ कम कर दिया। वर्ष 1979 में हेमंत कुमार ने चालीस और पचास के दशक में सलिल चौधरी के संगीत निर्देशन मे गाए अपने गानों को दोबारा रिकार्डक राया और उसे लीजेंड ऑफ ग्लोरी -2 अलबम के रूप में जारी किया, जो काफी सफल रहा।
वर्ष 1989 मे हेमंत कुमार बांग्लादेश के ढाका शहर मंे माइकल मधुसूधन अवार्ड लेने गए जहाँ, उन्होंने एक संगीत समारोह मे हिस्सा भी लिया। समारोह की समाप्ति के बाद जब वह भारत लौटे तब उन्हें दिलका दौरा पड़ा। लगभग पांच दशक तक मधुर संगीत लहरियो सेश्रोताओं को मदहोश करने वाला महान संगीतकार और पार्श्व गायक 26 सिंतबर 1989 को हसे हमेशा के लिए दूर चला गया।

Sunday, September 19, 2010

रफी साहब और मदन मोहन: अनरिलीज्ड सॉन्ग

मुझे याद एक बार युनुसजी ने अपने ब्लॉग पर कहा था कि किसी महान शख्सियत को याद करने के लिए कोई खास दिन मुकर्रर नहीं हो सकता है। आज मदन मोहन जी का एक गीत सुना तो दिल में कुछ ख्यालात आ गए, सोचा कि आप से भी उसे साझा कर लें। मदन मोहन जैसे संगीतकार बिरले ही होते हैं। फ्लॉप फिल्मों को अपने संगीत के दम पर हिट कराने वाले मदनजी का संगीत आज ज्यादा पंसद किया जा रहा है। यह एक दु:खद पहलु ही है कि मदनजी के संगीत को उस समय ज्यादा तवज्जो नहीं मिल पाई जितनी आज। अपने समकालीन संगीतकारों से अलग काम करने वाले मदन जी की हर रचना और उसकी शब्दावली पर पैनी नजर रहती थी। राजा मेहंदी अली खां जैसे अजीम शायर की संगत उनके संगीत और कालजयी बना दिया। वे पूरी तन्मयता के साथ धुन बनाते, गायकों से रियाज कराते और उनकी यह ऊर्जा रिकॉर्डिंग के बाद तक बनी रहती। गायकों के प्रति हमेशा उनके दिल में सम्मान रहता था, यही वजह है कि लताजी ने एक बार कहा कि दूसरे संगीतकारों ने मुझे गीत दिए लेकिन मदनजी ने मुझे संगीत दिया।



मदन मोहन के बेटे संजीव कोहली ने शायद 2009 में उनके ऐसे गीतों की सीडी लॉन्च की जो कभी रिलीज ही नहीं हुए। रफी साहब, लताजी, तलत महमूद, आशाजी ने मदनजी के इन गीतों को अपनी आवाज दी। इनमें कुछ गीत को इतने शानदार है कि बस इन्हें सुनते जाइए...। मुझे यह समझ में नहीं आया कि इन गीतों तो अब तक किसी फिल्मकार ने तवज्जो क्यों नहीं दी। क्यो नहीं किसी फिल्म में ये गीत हमे सुनाई दिए।



ख़ैर मदनजी के उसी अल्बम से से रफी साहब के गाए दो गीतों का जिक्र मैं करना चाहूंगा। एक गीत है कैसे कटेगी जिंदगी तेरे बगैर। दूसरा है आशाजी के साथ धड़कन है तू मेरे दिल की। पहले गीत में स्थिरता है, शब्द सुंदर हैं, संगीत किसी मस्त झरने की तरह बहता जाता है। जबकि दूसरा गीत पाश्चात्य शैली का है। गाने की बीट्स शानदार है और रफी साहब और आशाजी ने इसे अपने चिर-परिचीत अंदाज में गाया है।

फोटो मदन मोहन की अधिकारिक वेब साईट से साभार. मदनजी के अन्य गानों के क्लीक करें.