Ek Nazar

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Monday, April 12, 2010

होली के छह महीने बाद वेलेंटाइन डे और वेलेंटाइन के कुछ समय बाद करवाचौथ


जब कोई बड़े बजट की फिल्म बनती है तो बहुत सी चीजों का ध्यान रखा जाता है। लेकिन फिल्म में कोई ना चूक हो ही जाती है। गलती भी ऐसी की होली के छह माह बाद वेलेंटाइन डे और इसके कुछ समय बाद करवाचौथ मना लिया जाता है।
जैसे फिल्म बागबान
अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी, सलमान खान, महिमा चौधरी जैसे बड़े सितारे थे फिल्म में। इसके अलावा सुमन रंगनाथन, अमन वर्मा, समीर सोनी, नासिर खान, लिटिल दुबे भी फिल्म की केंद्रीय भूमिका में थे। बैनर बीआर फिल्मस, डायरेक्टर रवि चोपड़ा। ये वही रवि चोपड़ा हैं जिन्होंने द बर्निंग ट्रेन जैसे महान फिल्म और महाभारत जैसा महान टीवी सीरियल बनाया। लेकिन फिर भी चूक तो हो ही जाती है। कैसे, आइए मैं बताता हूं।

1) फिल्म शुरू होने के कुछ देर बाद अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी अपने परिवार के साथ होली का गीत गाते हैं। खूब मस्ती होती है और सभी जमकर होली खेलते हैं। अमिताभ आईसीआईसीआई बैंक से रिटायर होते हैं। इसके बाद अमिताभ के चारों बच्चे माता-पिता को छह-छह माह अपने पास रखने के लिए तैयार होते हैं और दोनों को उनकी बात माननी पड़ती है। याद रखिएगा बात छह-छह महीने की हो रही है। फिल्म थोड़ी आगे बढ़ती है तो अमिताभ अकेलेपने एक कैफे में बैठकर किताब लिख रहे होते हैं और हेमा मालिनी उनसे दूर है। तभी कैफे के लड़के वेल्टाइन डे मनाते हैं। होली के छह माह बाद तो वेल्टाइन डे नहीं आता है। मेरे पास जो कैलेंडर है उसमें तो बिल्कुल नहीं आता। गड़बड़झाला है कि नहीं।

2) हेमा मालिनी अपनी पोती को वेल्टाइन डे के मौके पर एक क्लब में बदमाश से बचाती है। थोड़ी लेक्चरबाजी होती है, हाईवोल्टेज ड्रामा स्क्रीन पर दिखाई देता है, और अगले ही सीन में हेमा को करवाचौथ मनाते दिखाया गया है।
अब आप ही बताइए कि क्या वेलेन्टाइन डे के छह माह के बीच करवाचौथ आ सकता है क्या? मुझे नहीं लगता। लेकिन बागबान में तो आता है।

3) फिल्म के सीन में समीर सोनी देर रात तक काम करता रहता है। तभी अमिताभ बच्चन उसे मदद की पेशकश करते हैं। लेकिन वह यह कहकर मना कर देता है कि कहां आप की छोटी सी कंपनी और कहां मल्टीनेशनल कंपनी का वर्कलोड। अब ही बताइए आईसीआईसीआई क्या छोटी कंपनी है। चलिए माना वह अपने पिता को नीचा दिखाने की कोशिश करता है लेकिन इसका मतलब यह निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी बैंक इतनी छोटी हो जाए। इस डायलॉग की जगह होना चाहिए था, 'कहां आप की बैंक की नौकरी और कहां मल्टीनेशनल कंपनी का वर्क लोड।"

आगे भी जारी रखेंगे ऐसी श्रंखला को.....।
फोटो साभार: screenindia.com

Monday, March 29, 2010

भिखारियों ने हिट करा दिया गाना

हिंदी फिल्म संगीत में कल्याणजी आनंदजी का नाम बड़े अदब से लिया जाता है। परचून की दुकान से संगीतकार बनने का सफर वाकई हैरान करता है। संगीत की असीम गहराई में उतरने का भी दिलचस्प वाकया है। कच्छ से बम्बई (अब मुंबई) आए कल्याणजी आनंदजी के परिवार को रोजी रोटी चलाने के लिए परचून की दुकान खोलनी पड़ी। उनके पास एक ग्राहक ऐसा आता थो जो सामान तो हमेशा खरीदता था लेकिन रुपये कभी नहीं दे पाता था। सो उन्हें पैसे के लिए बार-बार तगादा करना पड़ता था। एक दिन ग्राहक ने बचे रुपयों के बदले कल्याणजी और आनंदजी को संगीत की शिक्षा देने का ऑफर दे दिया। बस फिर क्या था दोनों की संगीत की प्रारंभिक शिक्षा शुरू हो गयी।
धीरे-धीरे दोनों भाइयों ने अपना ऑरकेस्ट्रा ग्रुप शुरू कर दिया। कामयाबी मिली तो फिल्मी दुनिया की ओर भी कदम बढ़ा दिए। हेमंत कुमार के सहायक के रूप में कल्याणजी ने अपना करियर शुरू किया। और फिल्म नागिन के लिए क्लेवॉयलिन से बीन की धुन निकाली और पूरे हिंदुस्तान में कल्याणीजी वीरजी शाह मशहूर हो गये। 1959 में उन्हें स्वतंत्र रूप से पहली फिल्म मिली सम्राट चंद्रगुप्त। मजे की बात है कि इस फिल्म में उनके छोटे भाई आनंदजी भी साथ हो लिए और बन गई कल्याण जी आनंदजी की जोड़ी।
बात करते हैं सम्राट चंद्रगुप्त की। फिल्म के मुख्य कलाकार थे भारत भूषण, कृष्णा कुमारी, निरूपमा रॉय और बीएम व्यास। निर्देशक थे बाबूभाई मिस्त्री । इस के गीत को लेकर भी एक मजेदार किस्सा मशहूर है। 'चाहे पास हो चाहे दूर हो....." आज भले ये गाना सुपरहिट गीतों में शुमार होता है, लेकिन अगर कल्याणजी अपनी जिद पर नहीं अड़े होते तो शायद यह गाना आप हम नहीं सुन पा रहे होते।
हुआ यूं कि जब कल्याणजी आनंदजी यह गीत लेकर फिल्म के निर्माता सुभाष देसाई के पास गए तो उन्हें न यह गीत पसंद आया और न ही धुन। पहली ही फिल्म में निर्माता के तेवर देखकर दोनों भाई थोड़ा मायूस तो हुए लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। कल्याणजी को तभी एक योजना सूझी, उन्होंने देख कि निर्माता के घर के आस-पास भिखारियों का डेरा रहता है। उन्होंने कुछ भिखारियों को पैसा देकर इस गाने की रिहर्सल करवा दी। भिखारियों ने इस गाने को ट्रेन में, बस में और गलियों में गाकर काफी लोकप्रिय कर दिया। फिर क्या था देसाईजी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने फिल्म में इस गाने को रखने की इजाजत दे दी। इस तरह कल्याणजी की युक्ति ने इस गाने बचा लिया और भिखारियों ने इसे रिलीजिंग से पहले ही लोकप्रिय बना दिया। वैसे यह गीत भरत व्यास ने लिखा था।