हिंदी फिल्मों में हर इक मौके में गाने रखे जा सकते है। शादी के गीत, सगाई के गीत, प्यार के गीत, बिछुड़ने के गीत, मस्तीभरे गीत और देशभक्ति के गीत। इसके अलावा भक्ति गीत, पिकनीक, बर्थडे, डांडिया, भांगड़ा, लावणी और जितनी सिचुएशन आप सोच सकते है उतने गीत। फिल्मों में लोरियों का भी अहम स्थान है।
ज्यादातर लोरियां मां ही गातीं हैं। कहीं-कहीं पिता को भी गाते दिखाया गया है। ब्रह्मचारी में शम्मी कपूर 'अंकल" वाली लोरी गाते हैं। लेकिन फिल्मों में प्रेमी को लोरी गाते दिखाया गया है। बात भले ही चौंकाने वाली लगे पर यह सौ फीसदी सच है। आप की राय थोड़ी अलग हो सकती है। ऐसी सिचुएशन दो बार फिल्मों में दिखाई गई है जहां प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए लोरी गा रहा है, यह बात अलग 'लोरी" के अंत में प्रेमिका की नींद भंग हो जाती है। वाह क्या सीन है। चलिए ज्यादा पहेलियां न बुझाते हुए आपको बता ही देते हैं।
1943 में बॉम्बे टॉकिज ने एक फिल्म बनाई थी 'किस्मत"। फिल्म के मुख्य कलाकार थे अशोक कुमार, मुमताज शांति, शाह नवाज। इस फिल्म को हिंदुस्तान ने सबसे बड़ी हिट फिल्म माना जाता है। उस समय इस फिल्म ने कई रेकॉर्ड बनाए थे। कलकत्ता (अब कोलकाता) में यह फिल्म लगातार तीन साल तक चली थी और इसने उस समय इस फिल्म ने एक करोड़ रुपए की कमाई की थी। फिल्म में संगीत अनिल बिस्वास का था और गीत लिखे थे कवि प्रदीपजी ने। आपको इस फिल्म का सदाबहार गाना 'दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है" तो याद ही होगा। इसके अलावा एक गीत और जो आज भी पुराने फिल्मों के रसिकों की जुबां पर हमेशा रहता है। वह है 'धीरे-धीरे आ रे बादल धीरे आ, मेरा बुलबुल सो रहा है शोर गुल न मचा।" अशोक कुमार और आमीरबाई कर्नाटकी की आवाज में यह गीत बड़ा ही सुखद लगता है। नायिक सो रही है और नायक गरजते बादलों ने कह रहा है धीरे-धीरे आ रे बादल.... मेरा बुलबुल सो रहा है शोर गुल न मचा। यह एक लोरीनुमा गीत है जो नायक गा रहा है। आज की फिल्मों में न तो ऐसी सिचुएशन पैदा की जा सकती है और न ही ऐसा गीत बन सकता है। शांत, मधुर एकदम कलकल बहते झरने की तरह।
दूसरा गीत है फिल्म ब्वॉय फ्रेंड का। 1961 में बनी इस फिल्म के मुख्य कलाकार थे शम्मी कपूर और मधुबाला। गीत हसरत जयपुरी के और संगीत शंकर जयकिशन का। यूं तो फिल्म के सारे गानों को शोहरत मिली। जैसे रफी साहब का गाया मुझे अपणा यार बना लो (तीन वर्जन)। सलाम आपकी मीठी नजर को सलाम। लेकिन फिल्म का सबसे ज्यादा हिट गाना था'धीरे चल धीरे चल ऐ.. भीगी हवा, मेरे बुलबुल की है नींद जवा।" इस लोरीनुमा गीत की सिचुएशन भी पहले जैसी ही है लेकिन इसमें नायिका गाती तो नहीं है पर चुपचाप नायक का गाना सुनकर मंद मंद मुस्कुराती रहती है। रफी साहब की आवाज में यह गीत और नीखर जाता है। शम्मी कपूर की अदाकारी और मधुबाला की अदा..... क्या ऐसे संयोजन की आज कल्पना की जा सकती है।
Saturday, December 18, 2010
Tuesday, October 26, 2010
फिल्मी गीतों के दर्पण में करवा चौथ का सुंदर रूप
फिल्मी गीतों के दर्पण में सुहाग के प्रति प्रेम एवं समर्पण के प्रतीक करवा चौथ पर्व का सुंदर रूप जब-तब दिखाई देता रहता है । कई फिल्मकारों ने करवा चौथ के गीतों के जरिए नायक, नायिका की प्रेमाभिव्यक्ति को रपहले परदे पर उतारा है। करवा चौथ के सामयिक गीतों की विशेषता यह रही है कि इनका फिल्मांकन बेहद प्रभावी ढंग से किया गया है। कई नई पुरानी फिल्मों में शामिल ये गीत काफी हिट रहे हैं। करवा चौथ के ज्यादातर गीतों में पति-पत्नी के किरदारों को अभिनीत करते नायक, नायिका अपनी मोहब्बत का इजहार करते हुए एक-दूसरे की हमेशा सलामती की दुआ मांगते नजर आते हैं जबकि कुछ गीतों में विरह की व्याकुलता को दर्शाया गया है।
कुछेक पुरानी फिल्मों में करवा चौथ के गीतों को बेहद सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। ऐसी प्रस्तुति आज भी कुछ फिल्म निर्माता यदा-कदा अपनी फिल्मों में दे रहे हैं। साठ-सत्तर के दशक के बीच एक फिल्म 'सुहागरात" आई थी, जिसमें एक गीत 'गंगा मैया में जब तक कि पानी रहे. मेरे सजना तेरी जिंदगानी रहे" में करवा चौथ की महत्ता को प्रदर्शित कियागया था। 'सुहागरात" को ही घर छोड़कर कहीं चले गए पति के प्रति पत्नी का विश्वास एवं समर्पण भाव और भारतीय नारी की एकनिष्ठता की छवि इस गीत में नजर आती है। भारतीय समाज में पारम्परिक विवाह के साथ ही गंधर्व विवाह भीअपना एक अलग वजूद रखता है। दक्षिण भारत की हिन्दी फिल्म के रीमेक 'मांग भरो सजना" ऐसे ही विषय से प्रेरित थी। फिल्म के नायक का नायिका से पारम्परिक विवाह होता है जबकि उसका पहले ही किसी अन्य महिला से परिस्थितिजन्य गंधर्व विवाह हो चुका रहता है। एक पति के प्रति दोनों पत्नियों का एक जैसा प्रेम एवं समर्पण करवाचौथ के इस गीत 'दीपक मेरे सुहाग का जलता रहे, कभी चांद, कभी सूरज बनके निकलता रहे" में दिखाई देता है। अपने समय का यहसुपरहिट गीत आज भी करवा चौथ के मौके पर सुनाई दे जाता है।
हिन्दू सामाजिक मान्यता के अनुसार करवा चौथ का व्रत पति या भावी पति के लिए रखा जाता है। आदित्य चोपड़ा की फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे" नायिका भावी पति के बजाय अपने प्रेमी की छवि दिल में संजोए रखती है और करवा चौथ का व्रत भी वह भावी पति के बजाय प्रेमी का चेहरा देखकर ही तोड़ती है। नए निर्माता-निर्देशकों ने भी अपनी पारिवारिक फिल्मों के गीतों में करवा चौथ को सामयिक संदर्भों में स्थान दिया है। चाहे वह करन जौहर की 'कभी खुशी कभी गम" हो या फिर संजय लीला भंसाली की 'हम दिल दे चुके सनम हो" इन फिल्मों में करवा चौथ के दौरान पुरानी पीढ़ी के किरदारों के साथ ही नई पीढी की नायिकाएं अपने नायक के प्रेम की अठखेलियां करती नजर आती हैं। 'हम दिल दे चुके सनम" में करवा चौथ के चांद को इंगित करके नायक 'चांद छुपा बादल में शरमा के मेरी जानां सीने से लग जाना तू" गीत में नायिका से अपनी मोहब्बत का इजहार करता है।
आम धारणा है कि पत्नी अपने पति के लिए करवा चौथ का व्रतरखती है लेकिन बदलते दौर में बहुत से पति भी इस दिन उपवास रखकर पत्नी का साथ देते हैं। निर्माता-निर्देशक रवि चोपडा की फिल्म 'बागबां" में केंद्रीय किरदार अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी करवा चौथ का व्रत रखते हैं। इस मौके पर परिस्थितिजन्य दोनों अलग-अलग रहते हैं लेकिन टेलीफोन पर वार्तालाप के जरिए अपनीविरह वेदना व्यक्त करते हैं। इस फिल्म ने ऐसी छाप छोड़ी है कि निजी जीवन में भी बहुत से पति करवा चौथ का व्रत रखने लगे हैं।
कुछेक पुरानी फिल्मों में करवा चौथ के गीतों को बेहद सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। ऐसी प्रस्तुति आज भी कुछ फिल्म निर्माता यदा-कदा अपनी फिल्मों में दे रहे हैं। साठ-सत्तर के दशक के बीच एक फिल्म 'सुहागरात" आई थी, जिसमें एक गीत 'गंगा मैया में जब तक कि पानी रहे. मेरे सजना तेरी जिंदगानी रहे" में करवा चौथ की महत्ता को प्रदर्शित कियागया था। 'सुहागरात" को ही घर छोड़कर कहीं चले गए पति के प्रति पत्नी का विश्वास एवं समर्पण भाव और भारतीय नारी की एकनिष्ठता की छवि इस गीत में नजर आती है। भारतीय समाज में पारम्परिक विवाह के साथ ही गंधर्व विवाह भीअपना एक अलग वजूद रखता है। दक्षिण भारत की हिन्दी फिल्म के रीमेक 'मांग भरो सजना" ऐसे ही विषय से प्रेरित थी। फिल्म के नायक का नायिका से पारम्परिक विवाह होता है जबकि उसका पहले ही किसी अन्य महिला से परिस्थितिजन्य गंधर्व विवाह हो चुका रहता है। एक पति के प्रति दोनों पत्नियों का एक जैसा प्रेम एवं समर्पण करवाचौथ के इस गीत 'दीपक मेरे सुहाग का जलता रहे, कभी चांद, कभी सूरज बनके निकलता रहे" में दिखाई देता है। अपने समय का यहसुपरहिट गीत आज भी करवा चौथ के मौके पर सुनाई दे जाता है।
हिन्दू सामाजिक मान्यता के अनुसार करवा चौथ का व्रत पति या भावी पति के लिए रखा जाता है। आदित्य चोपड़ा की फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे" नायिका भावी पति के बजाय अपने प्रेमी की छवि दिल में संजोए रखती है और करवा चौथ का व्रत भी वह भावी पति के बजाय प्रेमी का चेहरा देखकर ही तोड़ती है। नए निर्माता-निर्देशकों ने भी अपनी पारिवारिक फिल्मों के गीतों में करवा चौथ को सामयिक संदर्भों में स्थान दिया है। चाहे वह करन जौहर की 'कभी खुशी कभी गम" हो या फिर संजय लीला भंसाली की 'हम दिल दे चुके सनम हो" इन फिल्मों में करवा चौथ के दौरान पुरानी पीढ़ी के किरदारों के साथ ही नई पीढी की नायिकाएं अपने नायक के प्रेम की अठखेलियां करती नजर आती हैं। 'हम दिल दे चुके सनम" में करवा चौथ के चांद को इंगित करके नायक 'चांद छुपा बादल में शरमा के मेरी जानां सीने से लग जाना तू" गीत में नायिका से अपनी मोहब्बत का इजहार करता है।
आम धारणा है कि पत्नी अपने पति के लिए करवा चौथ का व्रतरखती है लेकिन बदलते दौर में बहुत से पति भी इस दिन उपवास रखकर पत्नी का साथ देते हैं। निर्माता-निर्देशक रवि चोपडा की फिल्म 'बागबां" में केंद्रीय किरदार अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी करवा चौथ का व्रत रखते हैं। इस मौके पर परिस्थितिजन्य दोनों अलग-अलग रहते हैं लेकिन टेलीफोन पर वार्तालाप के जरिए अपनीविरह वेदना व्यक्त करते हैं। इस फिल्म ने ऐसी छाप छोड़ी है कि निजी जीवन में भी बहुत से पति करवा चौथ का व्रत रखने लगे हैं।
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