Ek Nazar

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Monday, September 27, 2010

लताजी और मेहंदी हसन एक साथ

लताजी की गायकी के बारे कुछ कहना यानि सूरज को दीपक दिखाने जैसा है। आज लताजी के जन्मदिन है और इस मौके पर एक ऐसी खुशखबरी है जिसे सुनकर हर कोई कह उठेगा कि इसका तो हमें बरसों से इंतजार था। लताजी और मेहंदी की युगल आवाज में एचएमवी अगले माह एक अल्बम लॉन्च करने वाला है।
कई मायनों पर में यह अल्बम खास है क्योंकि इसकी रिकॉर्डिंग दोनों देशों में हुई है। अपने हिस्से के गीत मेहंदी हसन ने पाकिस्तान में गाए और लताजी ने अपने हिस्से के गीत हिंदुस्तान में। आज लताजी के जन्मदिन पर उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं पर नजर डालते हैं।



लताजी ने शुरुआती दिनों में मराठी फिल्मों में काम किया। पहली मंगलागौर उनकी पहली फिल्म थी। इसके अलावा आनंदघन नाम से कुछेक फिल्मों में उन्होंने गीत भी कंपोज किए।

लताजी को साइकिल चलाना बेहद पसंद था। लेकिन वे कभी इसके खरीद नहीं पाईं। उन्होंने पहली कार 8000 रुपयों में खरीदी थीं। आज वे यश चोपड़ा की गिफ्ट की हुई कारण मर्सीडिज में चलतीं हैं।

उन्हें बॉन्ड सीरीज की हॉलीवुड की फिल्में बेहद पसंद हैं। हिंदी फिल्मों में त्रिशूल, मधूमती, दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे, शोले, सीता और गीता, बेहद पसंद है। किस्मत (अशोक कुमार) उन्होंने 50 बार देखी है।

लताजी को घर में केवल केएल सहगल के गीत गाने की इजाजत थी। क्योंकि लताजी के पिता को शााीय संगीत से बेहद प्यार था। एक बार उन्होंने रेडिओ खरीदा और जैसे उसे शुरू किया उस पर खबर आई कि सहगल साहब नहीं रहे। इतना सुनते ही उन्होंने रेडिओ वापस कर दिया।

हेमंत कुमार के साथ गीत गाते समय लताजी को खासी परेशानी होती थी। क्योंकि उस जमाने में गायकों को एक ही माइक्रोफोन से काम चलाना पड़ता था। हेमंत कुमार काफी लंबे थे। इसलिए लताजी को एक स्टूल रख उस पर खड़े होकर गाना गाना पड़ता था।

लताजी को तीखा-मसालेदार खाना बेहद पसंद है। कहा जाता है कि एक बार में वे 10-12 हरी मिर्च खा जाती थीं।

एक बार किशोर कुमार ने उनका मुंबई की लोकल ट्रेन में काफी पीछा किया। और यह सिलसिला रिकॉर्डिंग स्टुडिओ तक चला। उस लताजी और किशोर दा पहला डुएट गाना गाया।

लताजी को आज भी इस बात का मलाल है कि वे सहगलजी के साथ कभी नहीं गा सकीं और दिलीप कुमार को अपनी आवाज नहीं दे सकीं। एक बार लताजी के बारे में दिलीप कुमार ने कहा था कि लता यानि महाराष्ट्रीयन ये उर्दु कैसे गाएगी। इनके बोल से दाल-भात की बू आएगी। उसी दिन से लताजी ने उर्दु की कोचिंग शुरू कर दी।

लताजी रिकॉर्डिंग रुम में जाने से पहले चप्पलें बाहर ही उतार देती हैं। मधुबाला लताजी के इस कदर दीवानी थीं कि वे अपने कॉन्ट्रैक्ट में लिखवाती थीं कि मेरे सारे गाने लता ही गाएंगी।

क्रमश:

Saturday, September 25, 2010

याद किया दिल ने कहां हो तुम

सोचा था हेमंत दा की पोस्टिंग कुछ अलग करुंगा। इसके लिए रॉ मटैरियल भी तगोड़ लिया था। लेकिन वक्त ने इसकी इजाजत नहीं दी। शाम तो दफ्तर आए तो एजेंसी पर मैटर रिलीज हो चुका था। हमने उठाया कांट-छांट की और वैसे ही ठेल दिया। आगे कोशिश करुंगा की अपनी योजना को मूर्त रूप दे सकूं।


हिन्दी और बंगला फिल्मों के महान पार्श्वगायक और संगीतकार हेमंत कुमार के मदहोश करने वाले गीत आज भी फिजां में गूंजते महसूस होते हैं और उनकी स्मृति में श्रोताओं के दिल से यही आवाज निकलती है 'याद किया दिल ने कहाँ हो तुम" हेमंत कुमार मुखोपाध्याय का जन्म 16 जून 1920 को बनारस में हुआ। उनके जन्म के कुछ समय के बाद उनका परिवार कोलकाता चला गया, जहाँ उन्होंने मित्रा इंस्टीटयूट से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की । इंटर की परीक्षा उतीर्ण करने के बाद हेमंत कुमार ने जादवपुर यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया लेकिन कुछ समय के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ दी क्योंकि उस समय तक उनका रूझान संगीत की ओर हो गया था और वह संगीतकार बनना चाहते थे। उन्होंने संगीत की अपनी प्रारंभिक शिक्षा एक बंगला संगीतकार शैलेश दत्त गुप्ता से ली। इसके अलावा उस्ताद फैयाज खान से उन्होंने शााीय संगीत की शिक्षा भी ली।
वर्ष 1937 में शैलेश दत्त गुप्ता के संगीत निर्देशन में एक विदेशी संगीत कंपनी कोलंबिया लेबल के लिए हेमंत कुमार ने गैर फिल्मी गीत गाए । इसके बाद उन्होंने लगभग हर वर्ष ग्रामोफोनिक कंपनी ऑफ इंडिया के लिए अपनी आवाज दी। वर्ष 1940 में ग्रामोफोनिक कंपनी के लिए ही कमल दास गुप्ता के संगीत निर्देशन में हेमंत कुमार को अपना पहला हिन्दी गाना 'कितना दुख भुलाया तुमने" गाने का मौका मिला, जो एक गैर फिल्मी गीत था।

कुछ समय के बाद वे अपने मित्र हेमेन गुप्ता के साथ मुंबई आ गए। वर्ष 1951 मंे फिल्मिस्तान के बैनर तले बनने वाली अपनी पहली हिन्दी फिल्म 'आनंद मठ" के लिए उन्होंने हेमंत कुमार से संगीत देने की पेशकश की। 'आनंदमठ" की सफलता के बाद हेमंत कुमार संगीतकार के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए। इस फिल्म में लता मंगेशकर की आवाज में गाया 'वंदे मातरम्" गीत आज भी श्रोताओं में पूरे देशप्रेम का उबालला देता है। वर्ष '1951 मंे फिल्मिस्तान की शर्त में भी हेमंत कुमार का संगीत पसंद किया गया। इस बीच एसडी.बर्मन के संगीत निर्देशन में जाल, हाउस न. 44 और सोलहवां साल जैसी फिल्मों के लिए उन्होंने जो गाने गाए, वे श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुए। वर्ष 1954 में फिल्म नागिन में अपने संगीत को मिलीसफलता के बाद हेमंत कुमार सफलता के शिखर पर जा पहुंचे। नागिन का एक गीत 'मन डोले मेरा तन डोले" आज भी श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय है । इस फिल्म के लिए हेमंत कुमार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
हेमंत कुमार के संगीत से सजी गीतों की लंबी फेहरिस्त मे कुछ है
याद किया दिल ने कहाँ हो तुम
मन डोले मेरा तन डोले
मेरा दिल ए पुकारे आजा
नैन से नैन
जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला
है अपना दिल तो आवारा
इंसाफ की डगर पर बच्चों दिखाओ चल के
न जाओं सैंया छुडा के बहिंया
बेकरार करके हमे यूं न जाइए
कहीं दीप जले कहीं दिल
जरा नजरों से कह दो जी
ना तुम हमे जानो
वो शाम कुछ अजीब थी
तुम पुकार लो तुम्हारा इंतजार है
पचास के दशक में हेमंत कुमार ने बंगला और हिन्दी फिल्मों मेंसंगीत निर्देशन के साथ साथ गाने भी गाए । वर्ष 1959 में उन्होंन ेफिल्म निर्माण के क्षेत्र मे ंभी कदम रखा और हेमंता बेला प्रोडक्शन नाम की फिल्म कंपनी की स्थापना की जिसके बैनर तले उन्होंने मृणाल सेनके निर्देशन में एक बंगला फिल्म नील आकाशेर नीचे का निर्माण किया । इस फिल्म को प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल दिया गया । इसके बाद हेमंत कुमार ने अपने बैनर तले बीस साल बाद, कोहरा, बीबी और मकान, फरार, राहगीर, और खामोशी 1969 जैसी कई हिन्दी फिल्मों का भी निर्माण किया। सत्तर के दशक मे उन्होंने हिन्दी फिल्मों के लिए काम करना कुछ कम कर दिया। वर्ष 1979 में हेमंत कुमार ने चालीस और पचास के दशक में सलिल चौधरी के संगीत निर्देशन मे गाए अपने गानों को दोबारा रिकार्डक राया और उसे लीजेंड ऑफ ग्लोरी -2 अलबम के रूप में जारी किया, जो काफी सफल रहा।
वर्ष 1989 मे हेमंत कुमार बांग्लादेश के ढाका शहर मंे माइकल मधुसूधन अवार्ड लेने गए जहाँ, उन्होंने एक संगीत समारोह मे हिस्सा भी लिया। समारोह की समाप्ति के बाद जब वह भारत लौटे तब उन्हें दिलका दौरा पड़ा। लगभग पांच दशक तक मधुर संगीत लहरियो सेश्रोताओं को मदहोश करने वाला महान संगीतकार और पार्श्व गायक 26 सिंतबर 1989 को हसे हमेशा के लिए दूर चला गया।