प्रियदर्शन की नई फिल्म 'खट्टा मीठा" में कोई स्वाद नहीं है। हालांकि वे एक नई थीम लेकर आए हैं लेकिन पता नहीं क्यों वे उसे परदे पर उतार नहीं पाए।
कुछ अजीब सी लगी यह फिल्म। अक्षय कुमार पूरे समय जोर-जोर से बोलते रहते हैं, कि कान पक जाते हैं। जॉनी लीवर, राजपाल यादव जैसे कलाकार फिल्म में तो हैं लेकिन लगता ही नहीं ये नामचीन कमेडियन हैं। फिल्म शुरूआत से बोरिंग हैं। भला किसी फिल्म में ऐसा होता है कि आप शुरू के आधे घंटे में ही ऊब जाएं। कहानी में इतना बिखराव है कि दर्शकों के समझ कुछ नहीं आता। फिल्म की कहानी बहुत ही लंबी है। इसलिए चर्चा करने का कोई मतलब नहीं है। लोगों को हसाने के लिए गाली गलौज वाली भाषा का इस्तेमाल किया है जो समझ से परे है। हां कुछ सीन जरुर दमदार हैं। जैसे संजय राणा जब सचिन की बहन को छेड़ता है तो वह उसे उसी दफ्तर में जाकर सबक सिखाता है। सचिन यह अंदाज दर्शकों को रोमांचित कर कर सकता है। फिल्म का संपादन और स्क्रीनप्ले काफी कमजोर है और यही फिल्म को बेस्वाद बनाता। अक्षय कुमार ठीकठाक हैं, थोड़ा कम चिल्लाते तो मजा आता, त्रिशा का काम साधारण है बाकी कलाकार औसत। प्रीतम के संगीत में फीकापन है और सिनेमैटोग्राफी भी साधाराण है।
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