Ek Nazar

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Saturday, August 7, 2010

आयशा: जोड़ियां बनती हैं आसमान में..


किसी भी फिल्म की कहानी में यदि स्क्रीनप्ले की ओर ध्यान न दिया जाए तो फिल्म का क्या हश्र होता है, इसकी बानगी 'आयशा" में देखने मिलती है। एक अच्छी कहानी को कमजोर स्क्रीनप्ले ने सत्यानाश कर दिया। अगर इस ओर ध्यान दिया जाता तो फिल्म हिट साबित होती है।करीब दो सौ साल पहले जेन ऑस्टिन के नॉवेल 'एमा" पर आधारित है यह फिल्म। फिल्म का निचोड़ यही है कि 'जोड़ियां आसमान में बनती है....."।दिल्ली में रहने वाली आयशा (सोनम कपूर) को दूसरों को सलाह देने में खासा मजा आता है और वह शौकियातौर पर मैच मेकिंग का काम भी करती है। शैफाली (अमृता पुरी) एक बहनजी टाइप की लड़की जिसे वह मॉर्डन बना देती है ताकि उसकी शादी रणधीर (सायरस) से हो सके। लेकिन यहां कहानी उल्टी हो जाती है और रणधीर आयशा को प्रपोज कर देता है...लेकिन आयशा उसे मना कर देती है। इसके बाद और लोगों की भी शादियां जमाने की कोशिश करती है लेकिन असफल रहती है। इस बीच लोग उसके विरोधी भी हो जाते हंै... और अंत में वह सोचती है जोड़ियां जमाई नहीं जाती वह तो ऊपर से ही बनकर आती है.....। कहानी में और भी बहुत कुछ है.... लेकिन.....?

200 साल पहले लिखी गई कहानी को आज के दौर में बनाना काफी मुश्किल काम है। इसके लिए निर्देशक राजश्री ओझा की तारीफ करनी होगी उन्होंने आज के युवाओं को ध्यान में रखकर शानदान फिल्म बनाई है। शानदार इसलिए क्योंकि हर एक किरदार के साथ उन्होंने न्याय किया है। राजश्री ने अपनी तरफ से फिल्म को संभालने की पूरी कोशिश की लेकिन जैसा कि पहले बताया गया कि कमजोर स्क्रीनप्ले के बदौलत फिल्म इतनी सुस्त हो गयी है कि कई जगह ऊबाई आने लगी है। दो घंटे 12 मिनट की फिल्म में कुछ सीन जरुरत से ज्यादा लंबे हैं और फिल्म में अभय देओल और सोनम कपूर पूरे समय लड़ते रहते हैं जो फिल्म का एक और माइनस प्वाइंट है। हाई क्लास की सोसायटी को यह फिल्म बहुत अच्छी लग सकती है क्योंकि इसकी कहानी पैसेवालों के चारों ओर घूमती है। आम आदमी को यह अच्छा नहीं लग सकता। फिल्म का आर्ट डायरेक्शन कमाल का है।
संगीत 'आयशा" का प्लस प्वाइंट है। अमित त्रिवेदी ने अच्छी धुनें बनाईं हैं। फिल्म के दो गाने 'गल मीठी" और 'आयशा" युवाओं की जुबान पर हैं। दिल्ली और ऋषिकेश की खूबसूरत लोकेशन को रॉड्रिग्ज ने बहुत खूबसूरती से फिल्माया है।सोनम कपूर ने जानदार अभिनय से फिल्म में जान फूंक दी है। इरा दुबे और अमृता पुरी भी निराश नहीं करती हैं। अभय देओल हमेशा की तरह की अच्छे है। हां सायरस ने इस फिल्म जरुर चौंकाया है और शानदार अभिनय किया है।
फिल्म एक और खासियत है। इसे यंग लेडी ब्रिगेड बनाया है। निर्देशन किया है राजश्री ओझा ने। निर्माण का दायित्व संभाला है रिया कपूर ने। स्क्रीनप्ले लिखा देविका भगत ने। यानि कंप्लीट यंग लेडी ब्रिगेड।
photo: santabanta.com

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