Ek Nazar

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Wednesday, July 22, 2009

लव आज कल-मोहब्बत जिंदा रहती है.....




आने वाली फिल्म लव आज कल


बतौर निर्माता सैफ अली खान की यह पहली फिल्म है और इम्तियाज़ अली की निर्देशक के रूप में तीसरी। लोगों को इस फिल्म का बड़ी बेसबरी से इंतजार है क्योंकि इसमें हर दिल अजीज दीपिका पादुकोण भी है और सबसे खास ऋषि कपूर और नीतू सिंह की जोड़ी इसमें लंबे अरसे बाद लोगों को दिखेगी।सैफ लंबे अरसे से निर्माता बनना चाहते थे, क्योंकि शाहरुख और आमिर के बाद वे ही खान बचे (सलमान के जिक्र का मतलब नहीं है...?) थे। सैफ को दरकार थी, एक अच्छी कहानी और उनकी तलाश पूरी की करीना ने। सैफ को इम्तियाज़ के साथ फिल्म बनाने के लिए करीना ने ही एप्रोच किया था। करीना और इम्तियाज़ जब वी मेट में साथ काम कर चुके हैं। सैफ ने जब कहानी सुनी तो वे फौरन फिल्म बनाने के लिए तैयार हो गये। इम्तियाज़ अली ने ही लव आज कल की कहानी लिखी और फिल्म को निर्देशित किया है। फिल्म की कहानी को लेकर काफी गोपनीयता बरती गयी है। वैसे फिल्म दो पिरीयडों की कहानी है। एक समय है 1965 का जिसकी पृष्ठभूमि में भारत है और दूसरा 2009 यानि आज और पृष्ठभूमि में है सेन फ्रांसिसको। और लव आजकल का मतलब है कि भले वक्त बदल जाए लेकिन मोहब्बत जिंदा रहती है, मोहब्बत मर नहीं सकती। अब ये प्रयोग लोगों को कितना पसंद आता है यह 31 जुलाई को ही पता चलेगा। जब फिल्म रिलीज होगी। वैसे इसी दिन मोहम्मद रफी साहब की पुण्यतिथी भी है और उनका प्रसिद्ध गाना है, मोहब्बत जिंदा रहती है, मोहब्बत मर नहीं सकती.....।




निर्माता- सैफ अली खान, दिनेश विजन निर्देशक- इमित्याज़ अलीकलाकार- सैफ अली खान, दीपिका पादुकोन, नीतू सिंह, ऋषि कपूर.संगीत- प्रीतमगीत इरशाद कामिल सिनेमैटोग्राफी नटराजन सुब्रमण्यम

Thursday, July 9, 2009

112 साल पहले रिलीज हुई थी पहली फिल्म







चलो सिनेमा ब्लॉग पर आपका स्वागत है। फिल्म निर्माण भारत के प्रमुख उद्योगों में से एक है। हर साल 800 से ज्यादा फिल्में बनाने वाली हमारी फिल्म इंडस्ट्री का इतिहास काफी पुराना है। चूंकि इस ब्लॉग पर यह पहली पोस्टिंग है इसलिए भारतीय फिल्म के छोटे से लेकिन हैरान कर देने वाले इतिहास से आपको रू-ब-रू कराने की कोशिश कर रहा हूं। मैंने अब तक जो पढ़ा है, सुना है और सामग्री उपलब्ध है उसी पर मेरा यह लेख आधारित है।



भारत में पहली फिल्म आज से 112 साल पहले जुलाई 1897 में बंबई (अब मुंबई) के वॉटसन होटल में रिलीज हुई थी। इसका निर्माण ल्यूमर बंधुओं ने किया था। मजे कि बात यह है कि फिल्म महज दस मिनट की थी और इसमें केवल छह दृश्य थे। ट्रेन का स्टेशन पर आने का दृश्य, समुद्र में नहाने का दृश्य, मजदूरों के मील से बाहर निकलने का दृश्य, बिçल्डंग का ढहना और महिलाओं और सैनिकों का गाड़ी पर घूमना। इन अलग-अलग दृश्यों को एक साथ जोड़कर फिल्म का निर्माण किया गया था। इस फिल्म में कोई संवाद नहीं थे।



हालांकि इससे पहले भी सन्ा् 1889 में एक भारतीय फिल्म निर्माता एचएस भाटवडेकर ने फिल्म का निर्माण किया था। फिल्म के नाम थे, दो पहलवानों की कुश्ती और बंदर को नचाता मदारी। ये फिल्में भी महज तीन मिनटों की ही थीं और इसमें केवल दो दृश्य थे।1 जनवरी 1900 को एक शॉर्ट फिल्म और रिलीज हुई। जिसे एक नृत्यांगना फातिमा और एक ब्रितानी कलाकार टिवेलो ने बनाया था। उन्होंने ब्रिटेन से कुछ पुरानी फिल्मों की रीलें लाईं और उन्हें आपस में जोड़कर एक फिल्म की शक्ल दे दी। यह फिल्म बंबई के नावेल्टी सिनेमा में रिलीज की गई थी। ये भी मूक फिल्म थी। 1889 से 1930 तक मूक फिल्मों का दौर चलता रहा। इस दौरान करीब 1200 फिल्में रिलीज हुईं। ये बेहद अफसोसजनक तथ्य है कि इनमें से कुछ के प्रिंट उपलब्ध हैं।



1913 में दूंढीराज गोविंद फाल्के (दादा साहेब फाल्के) ने राजा हरीशचंद्र फिल्म का निर्माण किया। यह भी मूक फिल्म ही थी। फिर आया वह दौर जिसने उस समय की फिल्मी दुनिया की शक्ल ही बदलकर रख दी।



बात है 1931 की जब भारत की पहली बोलती फिल्म आलमआरा रिलीज हुई। इसका निर्माण इपीरियल फिल्म कंपनी ने किया था और आलमआरा के निदेüशक थे आदेüशीर ईरानी। संगीतकार थे फिरोजशाह मिस्त्री और बी ईरानी। फिल्म में मुय भूमिकाएं निभाईं थीं, मास्टर विठ्ठल, जुबैदा, सुशीला और पृथ्वीराज कपूर ने। 124 मिनट की फिल्म में पृथ्वीराज कपूर (राज कपूर के पिता) ने खलनायक की भूमिका निभाई थी। मास्टर विठ्ठल नायक की भूमिका में थे और जुबैदा नायिका। नायिका का नाम फिल्म में आलमआरा था, जिसका मतलब होता है विश्व का सौंदर्य (शायद सबसे सुंदर )।... .....क्रमश